Thursday, September 15, 2011

"कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है" - महाराष्ट्र पुलिस


"कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है" - महाराष्ट्र पुलिस
 
ओ. पी. पाण्डेय, नगोठना, रायगढ़, महाराष्ट्र।
साथ में लवकुश तिवारी, पुणे, महाराष्ट्र से।
१६ सितंबर २०११
जानी मानी स्टील कंपनी जिंदल स्टील चोरी के नाम पर उन मजदूरों को महाराष्ट्र पुलिस के साथ मिलकर प्रताड़ित करने में जुटी हुई है जो करीब 15-16 साल से दिन रात 12-15 घंटे कंपनी के लिए काम करते हैं आ रहे हैं। जिन्हें सुविधा के नाम पर पुलिक की मार मिलती है। वेतन के नाम पर मजदूरी 7-12 हजार रूपए मिलता है वो भी ओवरटाइम करने के बावजूद। जबकि इस महंगाई में 70 रूपए किलो दाल बिक रही है और 15 रूपए किलो आलू। जिस कंपनी के गेट से एक सूई नहीं जा सकती है उस कंपनी के गेट से 10-15 किलो का केबल कैसे गायब होता जाता है, यह रहस्य वाली बात है। पूरी कहानी जिंदल समूह की कंपनी महाराष्ट्र सिमलेस की है। जो महाराष्ट्र जिले के रायगड़ के नगोठना में स्थित है। जहां पिछले करीब एक महीने से मजदूरों को चोरी की शक के नाम पर पुलिस द्वारा मरवाया पीटा जा रहा है। यह कंपनी डीपी जिदंल की है जो कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के चाचा बताए जाते हैं।
 
 बात करीब एक महीने पहले की है। कंपनी का कहना है कि उसके फ्रेब्रीकेशन विभाग से लगभग 15-16 किलो की केबल चोरी हो गयी। कंपनी के डीजीएम के.एन.प्रसाद (जिसका मोबाइल नं. 09404223427) का खुद कहना है कि किसी भी मजदूर के ऊपर चोरी का कोई आरोप नहीं हैं सिर्फ उनके ऊपर लापरवाही का आरोप है। उनसे से सिर्फ पूछ-ताछ की जा रही है। इस बीच कंपनी ने जिन मज़दूरों पर काम में लापरवाही का आरोप लगाया है जिनकी वजह से बिल्डिंग केबल गायब हुई है (न की चोरी हुई है डीजीएम, के.एन. प्रसाद ने खुद कहा है) उनके घरों की तलाशी भी ली है। के.एन.प्रसाद ने 'थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़' से पहले तो यह कहा कि आपसे क्या मतलब है, कुछ भी नहीं चोरी नहीं हुआ है।
 
फिर उन्होंने कहा ऐसी छोटी-मोटी चोरियों तो होती रहती हैं। फिर उन्होंने खुद बताया था कि किसी भी मज़दूर के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी गयी है सिर्फ थाने में एक शिकायत की गयी है, जिसमें मजदूरों के प्रति काम में लापरवाही बरतने की बात कही गयी है। प्रसाद ने खुद कहा है कि किसी मजदूर पर चोरी का आरोप है। लेकिन अब प्रसाद गरीब और बेसहारा मजदूरों को पुलिस को पैसा देकर पिटवा रहे हैं। अब सवाल उठता है कि जब किसी मजदूर पर चोरी का कोई आरोप नहीं है तो नगोठना थाने में (जिला रायगड महाराष्ट्र) मजदूरों को रोजाना बुलाकर पूछताछ के नाम पर क्यों पीटा जा रहा है।
 
इस बारे में थाना अध्यक्ष सोनवणे, नगोठना, जिला रायगढ़, महाराष्ट्र जिनका मोबाइल नंबर - 09821728576 है से जब उनस पूछा गया तो उनका उत्तर हैरान करने वाला था। सोनवणे का खुद कहना था कि किसी भी मजदूर के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि आपके थाने में क्यों फिर मजदूरों को बेल्टों से बुरी तरह से पीटा जा रहा है तो पहले तो उन्होंने पीटने की बात से इंकार किया लेकिन जब उन्हें इसका हवाला दिया गया तो सोनवणे साहब का हैरेतअंगेज जवाब था- "भाई कंपनी को दिखाने के लिए मजदूरों को पीटना ही पड़ता है"। जिससे बाकी के मजदूरों को सबक मिल सके। महाराष्ट्र पुलिस का यह कौन सा मानवीय चेहरा है कि किसी कंपनी (जिंदल स्टील कंपनी) को दिखाने के लिए गरीब और सीधे-साधे मजदूरों को झूठे आरोपों में थाने बुलाकर पीटा जा रहा है।
जिंदल स्टील समूह में मजदूरों पर कहर ढहाने का यह कोई पहला वाक्या नहीं है। मजदूरों पर जिंदल स्टील द्वारा शोषण करने और उन्हें प्रताड़ित करने के इस बारे में करीब 17-18 दिन पहले रायगढ़, महाराष्ट्र के एस.पी. आर.डी. शिंदे जिनका मोबाइल नंबर - 09594033933 से बात की गयी थी (फोन पर शिकायत की गयी थी) उन्होंने आश्वासन दिया था कि अभी तो हम गणेश पूजा के सिलसिले में बहुत व्यस्त हैं पूजा समाप्ति के बाद इस पूरे मामले को खुद देखेंगे, और जांच कराएंगे। लगता है एस.पी साहब अपनी बातों से तो मुकर गए या फिर मजदूरों के दर्द का उन्हें एहसास नहीं है। सवाल यह उठता है कि कंपनी जिसे लापरवाही मानती है उस लापरवाही की सजा रायगढ़ की पुलिस उन गरीब मजदूरों को थाने में रोजाना बुलाकर क्यों पीट रही है। जिनके खिलाफ न कोई सबूत है न कोई एफआईआर है, और तो और कंपनी खुद कहती है (डीजीएम के.एन.प्रसाद) कि मजदूरों पर चोरी की कोई आरोप नहीं है।
पूरे मामले में आरोपी मजदूरों से जब बात हुई है तो मजदूरों का कहना है कि वो काम करने के बाद दोपहर में खाना खाने के लिए कंपनी के कैंटीन में चल गए थे। जब वापस आए तो केबल गायब थी। इस केबल की कीमत तकरीबन 5-6 हजार रुपए बतायी जाती है। मजदूर जब गार्ड को बताने गए तो गार्ड भी गायब था। यही बात डीजीएम के.एन.प्रसाद भी कहता है कि इन मजदूरों पर चोरी का कोई आरोप नहीं है सिर्फ इनकी लापरवाही की वजह से केबल चोरी हुई है। के.एन.प्रसाद का कहना है कि जब ये लोग खाना खाने गए थे उसी समय गार्ड को बताकर जाना था। जबकि ऐसा कम होता है क्योंकि लोग कंपनी के अंदर काम के दौरान खाना खाने या चाय पीने जाते ही हैं।
अब इस कहानी की दूसरी पहलू भी है। सूत्र बताते हैं कि जिंदल स्टील की मजदूरों के प्रति एक पॉलिसी (शोषण पूर्ण, घृणित और स्वार्थी नज़रिया है) होती है। जो मजदूर १५-१७ साल से काम करते आ रहे हैं कल वो स्थायी नौकरी की मांग न करने लगे, पीएफ, ईएसआई की मांग न करें अथवा अपनी मांगों के संबंध में कोई संगठन न खड़ा कर लें इसलिए सीधे-साधे मजदूरों पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर उन्हें परेशान किया जाता है और थाने को पैसा खिलाकर उन्हें मरवाया पीटा जाता है जिससे वह बाद में नौकरी छोड़कर मजदूर अपने घर चला जाए। और कंपनी फिर नए मजदूरों को उनकी जगह पर रखकर सस्ते से सस्ता में अपना काम करवा सके। इस काम को बखूबा अंजाम देता है कंपनी का प्रंबधन तंत्र। इस बात में पूरी तरह सच्चाई भी है।
अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि मजदूरों ने चोरी किया है। तो सवाल उठता है कि हर कंपनी की गेट से मजदूरों की कंपनी से जाते समय उसके जेब में हाथ डालकर तलाशी ली जाती है। एक ऐसा केबल जिसकी वजन १० -१५ किलो बतायी जाती है वह कैसे गायब हो गया ये सबसे बड़ा रहस्य है। इसलिए शक की पूरी सूई कंपनी के मैनेजरों पर जाती है। और पूरे खेल में कंपनी के प्रंबधन तंत्र का हाथ होने के शक को मजबूत करता है। जो मजदूरों को झूठे आरोप में पुलिस को पैसा खिलाकर पिटवा रही है।

Monday, August 22, 2011

क्यों खड़ा हो गया सारा 'मीडिया' अन्ना के साथ!



 
आकाश श्रीवास्तव
संपादक, थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़
नई दिल्ली। २२ अगस्त २०११।
कोढ़ और कैंसर से भी खतरनाक 'भ्रष्टाचार' से अभूतपूर्व लड़ाई पूरा देश लड़ रहा है। अन्ना ने जो लड़ाई शुरू की है वह ऐतिहासिक है अभूतपूर्व हैं। इस लड़ाई को अंजाम तक पुहंचाने के लिए मीडिया ने जो अभूतपूर्व व्यवस्था की है उससे सरकार की भौहें भी चढ़ गयी हैं। हकीकत भी है कि इस लड़ाई को देश का समूचा मीडिया इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिनरात काम कर रहा है। टीवी चैनल हों या अखबार हो या फिर वेबमीडिया यानि इंटरनेट हो अन्ना के साथ कदम से कदम मिलाकर इस लड़ाई को युद्ध स्तर पर पूरी दुनिया में पहुंचा रहा है। दिन रात पत्रकार, फोटो पत्रकार, तकनीशियन एवं मीडिया से जुड़े अन्य लोग कंधों से कंधा मिलाकर खाने-पीने की परवाह किए बिना भ्रष्टाचार की खिलाफ इस लड़ाई को अपने-अपने तरीकों से लड़ रहे हैं। सच कहें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को दो धुरियां मिलकर लड़ी रही हैं एक आम भारतीय यानि 'अन्ना' और दूसरा भारतीय 'मीडिया'। जिसने पूरे आंदोलन को आज परवाज़ दे दिया है। हालत यह है कि कैमरों की नज़र से कुछ भी छूट पाना असंभव हो गया है।
 
 इस पूरी लड़ाई को अन्ना के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। जिसमें भारत की पूरी आम जनता दिन रात खड़ी है। लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के काम में भारतीय मीडिया का अभूतपूर्व योगदान है। एक-एक टीवी-टीवी चैनलों की 10-10 टीमें दिन रात काम करते हुए अन्ना के आंदोलन को धार देने में जुटी हुई हैं। आखिरकार टीवी पत्रकारिता का मतलब ही है, निरंतरता, उत्तेजना, संयमता, जोश, गंभीरता, प्रतिस्पर्धा, ताज़गी और पूरी उत्तरदायित्व को राष्ट्र और जनहित में हर ख़बर को धार देना है। जिसे सैकड़ों लोगो की टीम दिन-रात मिलकर काम करती हैं। इसमें टीवी पत्रकार, टीवी छायाकार, तकनीशियन, वीडियो एडीटर के अलावां भी कई और पहलू होते हैं जो टीवी स्क्रीन पर आगे और उसके पीछे युद्ध स्तर पर काम करते हैं। ऐसे वक्त में जब कोई बड़ी ख़बर होती है ऐसे हालात में टीवी काम करने वाला हर कोई व्यक्ति आँखें लाल होते हुए भी (बिना सोए) 'राउंड दी क्लॉक' काम करना पड़ता है।
 
खबरों की मारा-मारी अख़बारों में भी कम नहीं होती है। महत्वपूर्ण घटनाओं और ख़बरों को मुख्य पेज की हेडलाइन बनाने के लिए माथा पच्ची करनी पड़ती है। ख़बरों की रणनीति, खबरों की प्राथमिकता, किस ख़बर को कैसी धार दी जाए, किस ख़बर की नली काटी जाए जैसी तमाम पत्रकारिता की तकनीकियों और रणनीतियों की तेयारी टीवी पत्रकारिता के साथ अख़बारों में भी करनी होती है। यही कारण है कि किसी विशेष घटना चक्र के बदलते रूप को देखते हुए अख़बारों के हेडलाइल को रोक कर रखना पड़ता है ताकि सुबह लोगों को सबसे ताजी ख़बर की हेडलाइन पढ़ने को मिले। इसके लिए डाक एडीशन और सिटी एडीशन के समय में देररात तक फेरबदल करनी पड़ती है।
 
आज भारतीय समाज भ्रष्ट व्यवस्थाओं और भ्रष्ट नेताओं के जबड़े में फंसा हुआ है जो उस जबड़े से निकलने के लिए छटा-पटा रहा है। यही एक कारण है कि भारतीय टीवी मीडिया हर पल की एक एक गतिविधि और हर ख़बर को जन-जन तक, पल-पल पहुंचा रहा 24 घंटों। अन्ना के आंदोलन से जुड़े हर गतिविधि, उनके सभी पहलुओं, उनके सहयोगियों के बोले हर शब्द और उनके हाव-भाव को भारतीय मीडिया जन-जन तक पहुंचानें में दिनरात जुटा हुआ है। टीवी चैनलों पर तो लगभग 95 प्रतिशत ख़बरें अन्ना और उनकी भ्रष्टाचार से लड़ी जा रही लड़ाई को पूरी प्राथमिकता और सर्वोच्चता के साथ दिखाई दे रही हैं।
आज टीवी मीडिया, प्रिंट मीडिया और वेबमीडिया अगर अन्ना के आंदोलन से न जुटता तो आज जो जनसमर्थन और जनसैलाब उमड़ा दिखाई दे रहा है वह भीड़ इतनी आसानी से इस महाअनशन में दिखाई दे देती इसमें संदेह होता। आज भ्रष्टाचार से भारत की 99 प्रतिशत जनता त्रस्त है। मीडिया कर्मी तो इससे बाहर नहीं हो सकते हैं। यही कारण है कि टीवी चैनलों ने अपने वरिष्ठ संपादकों को वातानुकूलित केबिनों से निकालकर रामलीला मैदान में तैनात कर रखा है। जिससे ख़बर की परिपक्वता को बनाई रखी जा सके। हां रही बात टीआरपी और सर्कुलेशन की तो वह अलग मुद्दा हो सकता है। व्यवसाय के उस पहलू को इन तरह की घटनाक्रमों और आंदोलनों से नहीं जोड़ा जा सकता।
हां आपसी प्रतिस्पर्धा एक अलग मुद्दा हो सकता है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। सरकार से जुड़े हुए लोग अब मीडिया पर ही अंगुली उठाने लगे हैं। कह रहे हैं कि मीडिया सरकार के खिलाफ है और अन्ना एवं रामदेव के साथ है। ऐसे लोगों के बारे में यही कहा जा सकता है ये वे लोग हैं जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और जो 65 सालों से जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। उन्हें अब डर सताने लगा है कि जन लोकपाल बन जाने के बाद वे जनता को लूट नहीं पाएंगे और भ्रष्टाचार नहीं कर पाएंगे। देश के भ्रष्ट नेताओं को अन्ना और ऐसे उमड़ रहे जनसैलाब से सबक लेनी चाहिए। क्योंकि ये लोग ट्रकों में भरकर नहीं लाए जा रहे हैं इस तथ्य को समझ लेना चाहिए देश के इन बेईमान नेताओं को।